Sunday, 4 November 2012

इंतज़ार ..


 सुरसा की बहन है
इंतज़ार ...
यह अनंत तक  जाने वाली रेखा जैसी है
जवानी  जैसी ख्त्म होने वाली नहीं ..

कहते हैं ..
इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं
ख़त्म  भी होती है
फिर तुरंत शुरू भी हो जाती हैं /

इंतज़ार ...
एक प्यास की तरह है
जो बुझ तो जाती है
फिर तुरंत शुरू हो जाती है

बहुत लोग
इंतज़ार करते है
अच्छे और अनुकूल समय का
ठीक उसी तरह  ,, जैसे
उलटी गिनती गिन रहे वैज्ञानिक
दबा  देते है बटन
अन्तरिक्ष यान का ..


Friday, 5 October 2012

यौवन की नौका


अपने यौवन की नौका को देख
मैं मंद-मंद मुस्काता हूँ
नहीं डूबेगी कभी यह नौका
यह सोच-सोच इठलाता हूँ //

काम-क्रोध और लोभ-मोह की
लहरें उठ रही यौवन में
ये सब दुर्गुण कहाँ थे मुझे में
अठखेली भरती बचपन में //

बचपन की नौका ,कब डूब गई
कोई कुछ समझ न पाया
यौवन की नौका भी डूबेगी
तब शायद मर जाए माया //

Tuesday, 25 September 2012

पैवंद


( a poem written after the announcement to uproot the subsidy )

अतीत काल से ही
पैवंद पहचान है गरीबी की //

लाखों करोड़ों भारतीय
पैवंद लगे चादर के बल पर जीते हैं
जिसे ओढ़ते वक़्त
टेढा करना पड़ता  है  घुटना //

उन्हें नहीं दिखता
सरकारी पैवंद
जो उन चादरों में लगाए गए हैं
पैवंद हट जाने से
मुहाल हो गया उनका जीना //

सरकार ...
अब अश्वाश्नो  की सुई  से
उसे सिल देगी //

Monday, 17 September 2012

विपक्ष


ये कौन है
जो हर बात पर हल्ला करता है
हर बात पर चीखता-चिल्लाता है
 सरकार के हर फैसले पर
क्या चुप रहना उसकी नियति में नहीं ?

खोजी कुत्तो की तरह
गंध सूँघता फिरता है
पर जब बात उसके मतलब की न हो
पला झाड़ लेता है //

जब वह  फंसता  हैं
बड़ी आसानी कह देता है
राजनीति कोयला है
विपक्ष का काम
कीचड़ फेकना ही तो हैं

Friday, 6 July 2012

छाता

छाता
उसके काले होने पर
मत जाईये
सोख लेता है
धूप
चुपचाप ॥

वो देखिये
अनजाने में भी
साथ हो लिए
एक छाते के अन्दर ॥

माखन चोर ने भी
बनाया था छाता
गोवर्धन पर्वत का
अपने सखाओ को
बचाने के लिए ॥

हमें भी
बनना चाहिए
एक -दुसरे का छाता ॥

Tuesday, 26 June 2012

माँ ....तुम यहीं कहीं हो

माँ ....
मैं तुम्हें खोज लूँगा
तुम यहीं कहीं हो
मेरे आस -पास .... ॥

आपकी अस्थियां
प्रवाहित कर दी थी मैंने
गंगा में ॥
भाप बन कर उड़ी
गंगा -जल
और फिर बरस कर
धरती में समा गई

मैं सुबह उठकर
धरती को प्रणाम करता हू
इसे चन्दन समझ
माथे पर तिलक लगाता हू ॥

 ऐसा कर
आपका
प्यार और वात्सल्य
रोज पा लेता हू .. माँ ॥
-------------बबन पाण्डेय

Thursday, 14 June 2012

प्रेम की चिड़िया

मेरे पास थी एक चिड़िया
उछलती थी
कूदती थीफांदती थीउड़ते रहती थी
कभी माँ के आँचल में
कभी पिताजी के कंधे पर
कभी भाभी की साडी से
जाती थी लिपट
कभी दोस्तों के यहाँ
कभी पड़ोसियों के यहाँ
कभी चुग लेती थी
खेतों से मटर और चना //

काम /काम /काम
काम से फुर्सत नहीं था मुझे
मैंने उसे खाना नहीं दिया
ना ही पानी
उसके पंख टूट गए
वह मर गई //

जानते है
वह चिड़िया कौन थी
वह थी ....
मेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया //