Tuesday, 26 June 2012

माँ ....तुम यहीं कहीं हो

माँ ....
मैं तुम्हें खोज लूँगा
तुम यहीं कहीं हो
मेरे आस -पास .... ॥

आपकी अस्थियां
प्रवाहित कर दी थी मैंने
गंगा में ॥
भाप बन कर उड़ी
गंगा -जल
और फिर बरस कर
धरती में समा गई

मैं सुबह उठकर
धरती को प्रणाम करता हू
इसे चन्दन समझ
माथे पर तिलक लगाता हू ॥

 ऐसा कर
आपका
प्यार और वात्सल्य
रोज पा लेता हू .. माँ ॥
-------------बबन पाण्डेय

Thursday, 14 June 2012

प्रेम की चिड़िया

मेरे पास थी एक चिड़िया
उछलती थी
कूदती थीफांदती थीउड़ते रहती थी
कभी माँ के आँचल में
कभी पिताजी के कंधे पर
कभी भाभी की साडी से
जाती थी लिपट
कभी दोस्तों के यहाँ
कभी पड़ोसियों के यहाँ
कभी चुग लेती थी
खेतों से मटर और चना //

काम /काम /काम
काम से फुर्सत नहीं था मुझे
मैंने उसे खाना नहीं दिया
ना ही पानी
उसके पंख टूट गए
वह मर गई //

जानते है
वह चिड़िया कौन थी
वह थी ....
मेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया //

Thursday, 7 June 2012

नदी तट पर बैठी एक औरत .....

नदी तट पर बैठी थी
वह औरत .....
रोज देखती थी ...

उसमे गिरते गंदे नालों को
उसे लगता
मैं भी इसी गन्दी नदी की तरह हू

मानव व्यापार करने वालों ने
धकेल दिया मुझे .....
अँधेरी गलियो में
मैं भी नदी की तरह
कितनों से समागम कर
ढ़ोती हू ...उनकी गंदगी

फिर कुछ दिन बाद
एक बाढ़ आयी ....
नदी साफ़ हो गयी

तट पर बैठी औरत सोच रही थी
क्या मेरी जिन्दगी में भी कभी
इसी तरह कोई बाढ़ आएगी ?

Monday, 4 June 2012

सत्य कब्र से भी निकलकर दौड़ता है

राम थक चूके थे
रावण को बाण मारते -मारते
विभीषण ने बताया
उसकी नाभि में तो अमृत है
राम ने अमृत घट फोड़ दिया
रावण मारा गया ॥

तुम भी थक जाओगे
मेरे दोस्त !!!
सत्य को मारते -मारते
क्योकि ....
सत्य रूपी मानव के
अंग -अंग में अमृत -कलश है ॥

अगर , सत्य को
जिंदा भी दफ़न कर दोगे
मेरे दोस्त ... तो वह
कब्र से निकलकर भी दौड़ने लगेगा ॥