नदी तट पर बैठी थी
वह औरत .....
रोज देखती थी ...
उसमे गिरते गंदे नालों को
उसे लगता
मैं भी इसी गन्दी नदी की तरह हू ॥
मानव व्यापार करने वालों ने
धकेल दिया मुझे .....
अँधेरी गलियो में ॥
मैं भी नदी की तरह
कितनों से समागम कर
ढ़ोती हू ...उनकी गंदगी ॥
फिर कुछ दिन बाद
एक बाढ़ आयी ....
नदी साफ़ हो गयी ॥
तट पर बैठी औरत सोच रही थी
क्या मेरी जिन्दगी में भी कभी
इसी तरह कोई बाढ़ आएगी ?
वह औरत .....
रोज देखती थी ...
उसमे गिरते गंदे नालों को
उसे लगता
मैं भी इसी गन्दी नदी की तरह हू ॥
मानव व्यापार करने वालों ने
धकेल दिया मुझे .....
अँधेरी गलियो में ॥
मैं भी नदी की तरह
कितनों से समागम कर
ढ़ोती हू ...उनकी गंदगी ॥
फिर कुछ दिन बाद
एक बाढ़ आयी ....
नदी साफ़ हो गयी ॥
तट पर बैठी औरत सोच रही थी
क्या मेरी जिन्दगी में भी कभी
इसी तरह कोई बाढ़ आएगी ?
फिर कुछ दिन बाद
ReplyDeleteएक बाढ़ आयी ....
नदी साफ़ हो गयी ॥....पर जो कुछ छोड़ गयी उस सफाई के बाद भी ...वो मर्म ज़ख्म बहुत कुछ जीवन को पलट भी गएँ है ..हमेंशान के लिए ...बढ़िया बब्बन जी..nirmal paneri
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील कविता है,बबन जी.........दिल को छु गयी..........!
ReplyDeleteye kavita or achhi ban sakti thi
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर काव्य ... स्त्री के मनो विज्ञान को पढने की अच्छी कोसिस
ReplyDeletejivan aur nadi ek saman he...
ReplyDeleteArun sathi ... bahi ... aapka aabhar
ReplyDeleteसुंदर कटाक्ष और संवेदनशील कविता.
ReplyDeleteमैं भी नदी की तरह
ReplyDeleteकितनों से समागम कर
ढ़ोती हू ...उनकी गंदगी ॥
सन्दर्भ से जुदा चित्र .भाव उद्वेलित करती रचना विवशता का अक्श बुनती रचना औरत की निर उपाय ज़िन्दगी का .
आपने काफी सुन्दर लिखा है...
ReplyDeleteइसी विषय Padhe Betiya, Badhe Betiya, Hindi Article से सम्बंधित मिथिलेश२०२०.कॉम पर लिखा गया लेख अवश्य देखिये!
शुक्रिया सोनाली
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