Thursday 14 June 2012

प्रेम की चिड़िया

मेरे पास थी एक चिड़िया
उछलती थी
कूदती थीफांदती थीउड़ते रहती थी
कभी माँ के आँचल में
कभी पिताजी के कंधे पर
कभी भाभी की साडी से
जाती थी लिपट
कभी दोस्तों के यहाँ
कभी पड़ोसियों के यहाँ
कभी चुग लेती थी
खेतों से मटर और चना //

काम /काम /काम
काम से फुर्सत नहीं था मुझे
मैंने उसे खाना नहीं दिया
ना ही पानी
उसके पंख टूट गए
वह मर गई //

जानते है
वह चिड़िया कौन थी
वह थी ....
मेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया //

14 comments:

  1. बबन जी प्रेम की चिड़िया को जीवित रखिये और उसका विशेष ख्याल रखिये...

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  2. बबन जी मैंने अभी आपकी बाकि कि कवितायेँ भी पढ़ी... क्या गजब के भाव हैं... आपके विचारों को नमन....

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  3. लोकेन्द्र भाई .. सार्थक टिप्पणी के लिए आपका आभार

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  4. prem ki chidiyaan ko meethe bol chahiye.... umda..

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  5. वो बरसे तो भी कुछ ऐसे ... तन मन मेरा भिगो गए
    दिल मे नयी उम्मीदे ... कुछ सोये अरमान जागा गए
    न हवाए न चाँद न बरिस की वो रात थी
    न बाकी कोई ख़्वाहिश न थी उनकी चाहत
    फिर भी महेरबान होकर वो बरस गए
    रिम जिम आकार जीने की नयी वजह सीखाते गए
    बस महेरबान आज यू ही हुये की खुशबू अपनी बिखेर गए

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  6. बहुत सुन्दर भाई साहब ......

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  8. पहली बार आपके ब्‍लाग पर आना हुआ ब्‍लाका समर्थक बन गया हूा
    आप भी समर्थक बने तो खुशी होगी
    मेरे द्वारा संचालित ब्‍लाग

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  9. is prem ki chidiya.... ka dard aksar sabke sath aisa hi rahta hai... kya kare kaam se fursat jo nahi....

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  10. sunder,,chidia ke madhyam se apne jo vyakt karne ki koshish ki hai wo adhbhut hai,,,

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  11. सिर्फ सेहत के सहारे कटती नहीं है ज़िन्दगी ,

    पाल ले एक रोग नादाँ ज़िन्दगी के वास्ते .

    फिर पाल ले एक चिड़िया ,दे चुग्गा फिर से ....दे पानी दाना दे वारदाना दे ....

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