भगदड़ क्यों मची थी
मुझे नहीं पता
न जानने की कोशिस की मैंने
लोगों ने कहा -भागो! भागो!
शामिल हो गया मैं भी //
बाद में पता चला
गिर गया था कोई भूख से
खून भी निकल रहा था
भगदड़ इस बात पर मची थी
किसी ने गोली चलाई है//
धत तेरे की .....
माँ ने कितनी बार सिखाया था
जब कोई कहे
तुम्हारा कान कोई कौया ले गया
तो बेटा !
कौया को नहीं
अपने कान को देखना
जब कोई कहे
ReplyDeleteतुम्हारा कान का कौया ले गया
तो बेटा !
कौया को नहीं
अपने कान को देखना ..वाह बबन भाई सुन्दर सन्देश देती बेहद सुन्दर रचना
भूखा बन्दा गिर गया, खाली पेट धडाम ||
ReplyDeleteमरते मरते दस को और मार गया भगदड़ मचाकर -
भुक्खड़ कहीं का --
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ReplyDeleteशुक्रिया रविकर जी और सरोज बहन
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश देती रचना .......
ReplyDeleteoh---behtarin....sab kan hi dekhte he....aabhar
ReplyDeleteअफ्बाहों पर ध्यान न दे ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह बहुत खूब कहा माँ ने और हम समझे ही नहीं खूबसूरत सन्देश देती सुन्दर रचना |
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteसहज भाव से गम्भीर बात कहती सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteअपनी इस सुन्दर रचना की चर्चा मंगलवार ८/५/१२/ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर देखिये आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteगहन बात सहज तरीके से समझा गई यह रचना...अफवाहों से बचें.
ReplyDeleteसटीक संदेश.
ReplyDeleteजब कोई कहे
ReplyDeleteतुम्हारा कान कोई कौया ले गया
तो बेटा !
कौया को नहीं
अपने कान को देखना
....कितनी सहजता से गहन संदेश देती रचना...बहुत सुन्दर
bahut sundar sandesh pradhan post .
ReplyDeleteसहज भाव से कही गई गंभीर बात सार्थक रचना ....
ReplyDeleteबहुत खूब|||
ReplyDeleteअच्छा सन्देश देती बेहतरीन रचना....
बाद में पता चला
ReplyDeleteगिर गया था कोई भूख से ...
बेहद मार्मिक भाव पूर्ण प्रस्तुति....पांडे जी शुभ कामनाएं !!!
waah Baban bhaai, bahut sundar likhaa hai aapne......hakikat bayaan ki hai ........
ReplyDeleteइंसानी जीवन रेखा को बिलकुल सीधे चलना या उस पर कायम रह कर इन्सान कभी सीखना ही नही ...उसको ज़माने में बबूल के पेड़ बोने की और आम खाने की फितरत हमेंसा से रही है ....शास्त्र और विद्वान् हमेंशा शिखा गए आपने जीवन को झोंक कर सिर्फ इन्ही बातों को याद रखने के लिए पर ...इन्सान ...अजीब जानवर निकला इस धरा पर ...:):):)Nirmal Paneri
ReplyDeletebhaut aache baaban bahi
ReplyDeleteबबन भाई अपनी लीक से हट करआपने ये रचना पोस्ट की है . सन्देश के साथ साथ हमारी संवेदनहीनता पर भी कटाक्ष है....सराहनीय
ReplyDeleteachhi prastuti baban ji , kuchh spelling error hain shayad kahin kahin ,,ek baar dekh liziye
ReplyDeletevartaman vuvstha par bahut sundar prastuti
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