Monday, 30 April 2012

मैं भी जड़ बनूगा॥

थकती नहीं
पेड़ की जड़ें
पानी की खोज में
छू ही लेती है
भूमिगत जलस्तर ॥
मरने नहीं देती
अपनी जिजीविषा ॥


बखूबी जानती है वह
हर पत्ते को
हरियाली ही देना है
उसका काम ॥

अब .....
नहीं थकूगा
मैं भी जड़ बनूगा॥

11 comments:

  1. बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति....

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  2. Baban ji is chhoti si kavita me jeevan k sangharsh ki sari gathayen chhupi hui hain..wah bahut khoob...i m impressed sir!

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  3. बहुत शानदार और सृजनात्मक कविता !

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  4. too good...deep and so meaningful...

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  5. बहुत बढ़िया!
    --
    आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उऊपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!
    --
    मान्यवर, टिप्पणीबॉक्स से शब्दपुष्टिकरण हटा दीजिए न!

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  6. It is a poetry with good form ,intent and content .

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