थकती नहीं
पेड़ की जड़ें
पानी की खोज में
छू ही लेती है
भूमिगत जलस्तर ॥
मरने नहीं देती
अपनी जिजीविषा ॥
बखूबी जानती है वह
हर पत्ते को
हरियाली ही देना है
उसका काम ॥
अब .....
नहीं थकूगा
मैं भी जड़ बनूगा॥
पेड़ की जड़ें
पानी की खोज में
छू ही लेती है
भूमिगत जलस्तर ॥
मरने नहीं देती
अपनी जिजीविषा ॥
बखूबी जानती है वह
हर पत्ते को
हरियाली ही देना है
उसका काम ॥
अब .....
नहीं थकूगा
मैं भी जड़ बनूगा॥
बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteBaban ji is chhoti si kavita me jeevan k sangharsh ki sari gathayen chhupi hui hain..wah bahut khoob...i m impressed sir!
ReplyDeleteबहुत शानदार और सृजनात्मक कविता !
ReplyDeletetoo good...deep and so meaningful...
ReplyDeletePrernadayi, Sakaratmak Soch...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDelete--
आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उऊपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!
--
मान्यवर, टिप्पणीबॉक्स से शब्दपुष्टिकरण हटा दीजिए न!
It is a poetry with good form ,intent and content .
ReplyDeleteBEAUTIFUL POST
ReplyDeletebeautiful,,,,,meaning full
ReplyDeletebahut umda
ReplyDeleteअतिउत्तम !
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