नहीं नहीं ....
मैं दशरथ नहीं
जो कैकेयी से किये हर वादे
निभाता चलूँगा //
मैं .....
खोखले वादे करता हूँ तुमसे
मुझे
अपने राम को वनवास नहीं भेजना //
क्या हुआ
जो टूट गए
मेरे वादे
अपने दिल को
मोम नहीं
पत्थर बनाओ प्रिय //
मैं दशरथ नहीं
जो कैकेयी से किये हर वादे
निभाता चलूँगा //
मैं .....
खोखले वादे करता हूँ तुमसे
मुझे
अपने राम को वनवास नहीं भेजना //
क्या हुआ
जो टूट गए
मेरे वादे
अपने दिल को
मोम नहीं
पत्थर बनाओ प्रिय //
बढ़िया रचना!
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति बबन भाईसाहब........
Deleteशुक्रिया शास्त्री जी और रोली भाभी जी
ReplyDeleteRam . . Ki trh . . Jb sath nibhane ki kasm khai . . Phir kyo sita chhod di. . . . ?
ReplyDeleteजब आप दशरथ नही तो राम आपके पास कैसे आयेंगे ..? विष्णु ने धरती पर अवतार से पहले दशरथ को ही चुना था ...खोखले वादों से अच्छा कोई वादा न किया जाये अच्छे राजा सिर्फ राज्य का हित सोचते हैं ...मैं भी नही बन सकता राम कि जनता और राज्य छोड़ कर चला जाऊ वनवास ....फिर कालान्तर में न करूँ संदेह सीता पर किसी के कहने पर .........
ReplyDeleteइस रचना और नए ब्लॉग के लिए बधाई बबन भईया....