जैसे-जैसे
बड़ा होता है पेड़
टिकने लगती हैं निगाहें
मानों ......
जवान हो रही हो एक लड़की //
कोई फलों को तोड़ कर
मिटाता है अपनी भूख
कोई करता है इंतज़ार
तनाओं के मांसल होने का //
ठीक वैसे ही
ताक में रहता है आदमी
किसी लड़की को देखकर
फिर एक दिन
काट देता है आदमी
"पेड़ और लड़की " दोनों को //
बड़ा होता है पेड़
टिकने लगती हैं निगाहें
मानों ......
जवान हो रही हो एक लड़की //
कोई फलों को तोड़ कर
मिटाता है अपनी भूख
कोई करता है इंतज़ार
तनाओं के मांसल होने का //
ठीक वैसे ही
ताक में रहता है आदमी
किसी लड़की को देखकर
फिर एक दिन
काट देता है आदमी
"पेड़ और लड़की " दोनों को //
बिलकुल सत्य और मार्मिक रचना है बड़े भाई -----------बधाई स्वीकारें !!
ReplyDeleteati sunder
ReplyDeleteजैसे-जैसे
Deleteबड़ा होता है पेड़
टिकने लगती हैं निगाहें
मानों ......
जवान हो रही हो एक लड़की //
a good comparision sir jee..
शुक्रिया प्रवीन द्विवेदी जी
ReplyDeleteअविनाश रामदेव भाई
और माधवी मिश्र जी
बहुत अच्छी तुलना की है सर!
ReplyDeleteसादर
Mathur jee.... thanks a lot
ReplyDeletedil nikal liya baban ji aap ne
ReplyDeleteबेहद मार्मिक रचना, बधाई.
ReplyDeleteमार्मिक
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है ,और कविवर को धन्यबाद न दी जाए तो उचित न होगा /
DeleteShabdon ka jod gud hai...par ro dena kafi nahi hai...Baban sahab samaj solution bhi chahta hai....dukhti rag choodena okay...dard ka marham bhi batayein...we need people who can fill us with energy n confidence....dard ka proof...we know..we don't need..
ReplyDeleteShabdon ka jod gud hai...par ro dena kafi nahi hai...Baban sahab samaj solution bhi chahta hai....dukhti rag choodena okay...dard ka marham bhi batayein...we need people who can fill us with energy n confidence....dard ka proof...we know..we don't need..
ReplyDeleteएक दिन
ReplyDeleteकाट देता है आदमी
"पेड़ और लड़की " दोनों को //
-नित्यानंद गायेन